अमरकोषसम्पद्

         

नानार्थवर्गः 3.3.110

शक्रो घातुकमत्तेभो वर्षुकाब्दो घनाघनः
अभिमानोऽर्थादिदर्पे ज्ञाने प्रणयहिंसयोः

घनाघन (पुं) = इन्द्रः. 3.3.110.1.1

घनाघन (पुं) = मत्तगजः. 3.3.110.1.1

घनाघन (पुं) = वर्षुकाब्दः. 3.3.110.1.1

अभिमान (पुं) = अर्थादिदर्पाज्ञानम्. 3.3.110.2.1

अभिमान (पुं) = हिंसा. 3.3.110.2.1

अभिमान (पुं) = प्रणयम्. 3.3.110.2.1

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